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पहचाने अपने हाथों की रेखाओ को

हस्तरेखा ज्योतिष के आंकलन में रेखाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किस समय कोई शुभ या अशुभ घटना, रोग इत्यादि होगा यह रेखाओं द्वारा पता लगाया जा सकता है। घटनाओ के उस समय विशेष में रेखाओं पर कोई चिह्नï या क्रॉस या उध्र्व या अधोगामी रेखाएँ उदित होती है। भिन्न भिन्न रेखाएँ अपने नाम के अनुसार जातक के गुणों या अवगुणों का बयान अपनी स्थिति के अनुसार करती है।
हथेली में पाई जाने वाली प्रमुख रेखाएँ निम्र क्रम से इस प्रकार है-
1. जीवन रेखा : जीवन रेखा का उदय तर्जनी अगुंली व अगूंठे के बीच कहीं से होती है। यह अगूंठे के निचले हिस्से अर्थात हथेली के काफी बडे भाग (जिसे शुक्र का क्षेत्र कहते हैं) को घेरती हुई हथेली के जोड यानि मणिबंध तक पहुँचती है। जीवन रेखा को पितृ रेखा के नाम से भी जाना जाता है। जीवन रेखा से प्राय: शक्ति, स्वास्थ्य, पौरुष, गृहस्थी, घटनाकाल एवं जीवन की हानि संबंधी बातों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक घटना का अकंन जीवन रेखा पर उभर जाता है।
2. मस्तिष्क रेखा : मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के उद्ïगम स्थल या उसके आस-पास से उदय होकर मध्यमा अगुंली की तरफ कुछ उठती हुई सी प्रतीत होकर हथेली के दूसरे छोर की तरफ झुककर समाप्त हो जाती है। कई बार यह हथेली के दूसरे छोर तक भी पहुँच जाती है। यह रेखा जातक की सोच एवं मस्तिष्क संबंधी मनोभावों का वर्णन अपनी स्थिति, चिन्हों के अनुसार करती है। इसे मातृ रेखा भी कहा जाता है।
3. हृदय रेखा : यह रेखा कनिष्ठा अगुंली के नीचे से उदय होकर बृहस्पति की अगुंली अर्थात तर्जनी के नीचे तक पहुंचती है। कुछ विद्वान इसका उदय तर्जनी के नीचे से मानते है तथा अंत कनिष्ठा के नीचे। यह रेखा भक्ति के हृदय में रक्त के प्रवाह तथा भावनात्मक पक्ष का अपनी स्थिति के अनुसार बयान करती है। इस तेज रेखा के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा को भाग्य त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है तथा हथेली में चतुर्भुज एवं त्रिभुज का निर्माण में ये तीनों रेखा ही महत्वपूर्ण स्थान निभाती हैं।
4. भाग्य रेखा : भाग्य रेखा का उदय कई स्थानों से हो सकता है, परंतु अंत शनि की अंगुली अर्थात मध्यमा के नीचे ही होता है। बहुत ही कम हाथों में मणिबंध से उदय होकर मध्यमा के नीचे जाकर समाप्त होती है। इसे भाग्यशाली रेखा होने की गारंटी समझा जाता है। ऊध्र्व रेखाओं के अंतर्गत आने वाली रेखाओं में भाग्य रेखा प्रमुख है।
5. सूर्य रेखा : सूर्य रेखा को यश रेखा भी कहा जाता है। सूर्य रेखा से यश, कला, प्रतिभा, शिक्षा इत्यादि का अध्ययन किया जाता है तथा यह भी प्राय: हथेली के नीचे से उदय होकर अनामिका की जड़ में समाप्त होती है।
हथेली में पाई जाने वाली प्रमुख रेखाएँ निम्र क्रम से इस प्रकार है-
1. जीवन रेखा : जीवन रेखा का उदय तर्जनी अगुंली व अगूंठे के बीच कहीं से होती है। यह अगूंठे के निचले हिस्से अर्थात हथेली के काफी बडे भाग (जिसे शुक्र का क्षेत्र कहते हैं) को घेरती हुई हथेली के जोड यानि मणिबंध तक पहुँचती है। जीवन रेखा को पितृ रेखा के नाम से भी जाना जाता है। जीवन रेखा से प्राय: शक्ति, स्वास्थ्य, पौरुष, गृहस्थी, घटनाकाल एवं जीवन की हानि संबंधी बातों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक घटना का अकंन जीवन रेखा पर उभर जाता है।
2. मस्तिष्क रेखा : मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के उद्ïगम स्थल या उसके आस-पास से उदय होकर मध्यमा अगुंली की तरफ कुछ उठती हुई सी प्रतीत होकर हथेली के दूसरे छोर की तरफ झुककर समाप्त हो जाती है। कई बार यह हथेली के दूसरे छोर तक भी पहुँच जाती है। यह रेखा जातक की सोच एवं मस्तिष्क संबंधी मनोभावों का वर्णन अपनी स्थिति, चिन्हों के अनुसार करती है। इसे मातृ रेखा भी कहा जाता है।
3. हृदय रेखा : यह रेखा कनिष्ठा अगुंली के नीचे से उदय होकर बृहस्पति की अगुंली अर्थात तर्जनी के नीचे तक पहुंचती है। कुछ विद्वान इसका उदय तर्जनी के नीचे से मानते है तथा अंत कनिष्ठा के नीचे। यह रेखा भक्ति के हृदय में रक्त के प्रवाह तथा भावनात्मक पक्ष का अपनी स्थिति के अनुसार बयान करती है। इस तेज रेखा के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा को भाग्य त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है तथा हथेली में चतुर्भुज एवं त्रिभुज का निर्माण में ये तीनों रेखा ही महत्वपूर्ण स्थान निभाती हैं।
4. भाग्य रेखा : भाग्य रेखा का उदय कई स्थानों से हो सकता है, परंतु अंत शनि की अंगुली अर्थात मध्यमा के नीचे ही होता है। बहुत ही कम हाथों में मणिबंध से उदय होकर मध्यमा के नीचे जाकर समाप्त होती है। इसे भाग्यशाली रेखा होने की गारंटी समझा जाता है। ऊध्र्व रेखाओं के अंतर्गत आने वाली रेखाओं में भाग्य रेखा प्रमुख है।
5. सूर्य रेखा : सूर्य रेखा को यश रेखा भी कहा जाता है। सूर्य रेखा से यश, कला, प्रतिभा, शिक्षा इत्यादि का अध्ययन किया जाता है तथा यह भी प्राय: हथेली के नीचे से उदय होकर अनामिका की जड़ में समाप्त होती है।