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इसलिए एक वैध को ज्योतिषी भी होना चाहिए।

27-12-2016 Page : 1 / 1

इसलिए एक वैध को ज्योतिषी भी होना चाहिए।

रामायण के अंतिम आध्यायों में कफ, पित्त, वात्त से ही समस्त रोगों का होना बताया गया है। इन्हें ही त्रिदोष कहा गया है। यदि इन त्रिदोषों का उपविभाजन किया जाए तो प्रत्येक ग्रह अलग-अलग प्रकार के दोषों को नियंत्रित करता है। यदि सभी ग्रह जन्म स्थिति में एकदम निर्दोष हों तो कोई भी रोग शरीर में उत्पन्न नहीं होगा और व्यक्ति पूर्ण आयु का भोग करेगा। जब ग्रह नीच, अस्त, वक्री, शत्रु क्षेत्र गत या षड्बल से हीन या वर्गों में निकृष्ट हों तो वे शरीर में किसी न किसी तत्व की कमी रख देंगे या आधिक्य कर देंगे जो कि अंतत: आयु पर प्रभाव डालते हैं।

ग्रहों से जब आयुर्दाय निकालते हैं तो हरण या भरण की प्रक्रिया में ग्रहों की मूल स्थिति के आधार पर ही ऐसा किया जाता है। फलत: कमजोर ग्रह द्वारा आयु प्रदाय पूर्ण नहीं हो पाता और उसे पूर्ण आयु में से घटाना पड़ता है। ग्रह यदि पूर्ण शुभ हों तो वैद्य क्या करेगा और यदि भोजन उचित मात्रा में और आयुर्वेद के अनुसार किया जाए तो भी वैद्य क्या करेगा?

एक पुरानी कहावत है-
आंख तिरफला दांतन नौन,
                चौथाई छोड़के खावे पौन।
कोस एक पै झाड़े जाय,
                तासों बैद कहा ले खाय॥


प्राचीनकाल में जितने भी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुए हैं जैसे तक्षशिला इत्यादि या अन्य गुरुकुलों में, वेदों के साथ छह वेदांग भी पढ़ाए जाते थे। अत: जो ज्योतिष पढ़ता था उसे आयुर्वेद भी पढऩा पड़ता था और जो आयुर्वेद पढ़ता था उसे ज्योतिष पढऩी पड़ती थी। अत: जड़ी-बूटियों को उगाते समय भी नक्षत्र का ध्यान रखा जाता था और काटते समय भी तिथि, वार, नक्षत्र का ध्यान रखा जाता था। बहुत सारी दवाईयों को देते समय मंत्रोपचार भी बताए जाते थे। जो 100 प्रतिशत कारगर होते थे और होते है।

- ज्योतिष मंथन, 27-12-2016

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