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कर्जे से मुक्ति के लिए आज करें ये अचूक उपाय।

आज हनुमान जयंती है। जो व्यक्ति अत्यधिक प्रयासों व अति परिश्रम करने के बावजूद भी कर्जा नहीं उतर पा रहा हो तो श्री हनुमानजी के मंदिर में बैठकर एकाग्रचित्त होकर आज से इस स्तोत्र का एक पाठ प्रारंभ कर प्रतिदिन प्रात: और सायं दोनों समय करे तो हनुमान जी प्रसन्न होते है और मंगल ग्रह की अनुकूलता होती है जिसके फलस्वरूप कर्जा आसानी से उतरता है।
स्तोत्र का पाठ अर्थ सहित करें तो ज्यादा लाभकारी होता है क्योंकि बिना अर्थ जाने श्लोकों व मंत्रों का पाठ करना अच्छा नहीं होता।
ऋणहर्ता मंगल स्तोत्र
ऋणहर्ता मंगल स्तोत्र
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकर्मावरोधक:॥ १॥
1. मंगल, 2. भूमि पुत्र, 3. ऋणहर्ता, 4. धनप्रद, 5. स्थिरासन, 6. महाकाय, 7. सर्वकर्मावरोधक।
लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकर:।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन:॥ २॥
8. लोहित, 9. लोहितांग, 10. सामगानां कृपाकर (सामग ब्राह्मïणों के ऊपर कृपा करने वाले), 11. धरात्मज, 12. कुज, 13. भौम, 14. भूतिद (ऐश्वर्य को देने वाले), 15. भूमिनन्दन (पृथ्वी पुत्र)।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।
वृष्टïे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:॥ ३॥
16. अंगारक, 17. यम, 18. सर्व रोगापहारक अर्थात् सम्पूर्ण रोगों को दूर करने वाले, 19. वृष्टिकर्ता (वृष्टि करने वाले), 20. वृष्टिहर्ता (अतिवृष्टि को मिटाने वाले), तथा 21. सर्वकाम फलप्रद (सम्पूर्ण कामनाओं के फल को देने वाले)।
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥ ४॥
मंगल के उपर्युक्त 21 नामों को जो व्यक्ति श्रद्धा से पढ़ते हैं, उन पर कर्ज नहीं होता और वे लोग शीघ्र ही धन को प्राप्त करते हैं।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥ ५॥
धरणी (पृथ्वी) के गर्भ से उत्पन्न, बिजली के समान कान्ति से युक्त, शक्ति को धारण करने वाले, कुमार मंगल को मैं प्रणाम करता हूं।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभि:।
न तेषां भौमजा पीड़ा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥ ६॥
मनुष्यों को इस मंगल स्तोत्र का पाठ हमेशा करना चाहिए। जो लोग इस मंगल स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें मंगल के अरिष्ट की थोड़ी सी भी पीड़ा नहीं होती।
अङ्गारक! महाभाग! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥ ७॥
हे अंगारक, महाभाग, भगवान्ï, भक्त वत्सल, भौम! आपको हम प्रणाम करते हैं। हमारे पूर्ण ऋण (कर्ज) को आप दूर कीजिए।
ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यव:।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ ८॥
ऋण, रोग, दरिद्रता तथा अन्य अपमृत्यु, भय, क्लेश तथा मनस्ताप मेरे सदैव दूर हो जाएं।
अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मन:।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥ ९॥
अतिवक्र, दुराराध्य भगवान् मंगल, आप प्रसन्न होने पर साम्राज्य दे सकते हो, पर नाराज होने पर तुरन्त ही साम्राज्य को नष्ट भी कर देते हो।
विरञ्चि शक्र विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबल:॥ १०॥
हे महाराज! आप नाराज होने पर ब्रह्मा, इन्द्र तथा विष्णु के भी साम्राज्य सम्पत्ति को नष्ट कर सकते हो फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है? इस प्रकार के पराक्रम से युक्त होने के कारण आप महानबलवान् और महाराज हैं।
पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गता:।
ऋणदारिद्रयदु: खेन शत्रूणां च भयात्तत:।। ११।।
हे भगवन् आप मुझे पुत्र दो, मैं आपकी शरण में हूं। ऋण, दारिद्रय, दु:ख तथा शत्रु के भय से मुझे मुक्त करो।
एभिद्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।। १२।।
इन बारह श्लोकों वाले इस ऋणमोचन मंगल स्त्रोत से जोव्यक्ति मंगल की स्तुति करता हैं वह शीघ्र ही कर्ज से उबरने लगता है।
स्थिरासनो महाकाय: सर्वकर्मावरोधक:॥ १॥
1. मंगल, 2. भूमि पुत्र, 3. ऋणहर्ता, 4. धनप्रद, 5. स्थिरासन, 6. महाकाय, 7. सर्वकर्मावरोधक।
लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगानां कृपाकर:।
धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन:॥ २॥
8. लोहित, 9. लोहितांग, 10. सामगानां कृपाकर (सामग ब्राह्मïणों के ऊपर कृपा करने वाले), 11. धरात्मज, 12. कुज, 13. भौम, 14. भूतिद (ऐश्वर्य को देने वाले), 15. भूमिनन्दन (पृथ्वी पुत्र)।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:।
वृष्टïे कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:॥ ३॥
16. अंगारक, 17. यम, 18. सर्व रोगापहारक अर्थात् सम्पूर्ण रोगों को दूर करने वाले, 19. वृष्टिकर्ता (वृष्टि करने वाले), 20. वृष्टिहर्ता (अतिवृष्टि को मिटाने वाले), तथा 21. सर्वकाम फलप्रद (सम्पूर्ण कामनाओं के फल को देने वाले)।
एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥ ४॥
मंगल के उपर्युक्त 21 नामों को जो व्यक्ति श्रद्धा से पढ़ते हैं, उन पर कर्ज नहीं होता और वे लोग शीघ्र ही धन को प्राप्त करते हैं।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥ ५॥
धरणी (पृथ्वी) के गर्भ से उत्पन्न, बिजली के समान कान्ति से युक्त, शक्ति को धारण करने वाले, कुमार मंगल को मैं प्रणाम करता हूं।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत् पठनीयं सदा नृभि:।
न तेषां भौमजा पीड़ा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥ ६॥
मनुष्यों को इस मंगल स्तोत्र का पाठ हमेशा करना चाहिए। जो लोग इस मंगल स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें मंगल के अरिष्ट की थोड़ी सी भी पीड़ा नहीं होती।
अङ्गारक! महाभाग! भगवन्! भक्तवत्सल!
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥ ७॥
हे अंगारक, महाभाग, भगवान्ï, भक्त वत्सल, भौम! आपको हम प्रणाम करते हैं। हमारे पूर्ण ऋण (कर्ज) को आप दूर कीजिए।
ऋणरोगादि-दारिद्रयं ये चाऽन्ये ह्यपमृत्यव:।
भय-क्लेश-मनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ ८॥
ऋण, रोग, दरिद्रता तथा अन्य अपमृत्यु, भय, क्लेश तथा मनस्ताप मेरे सदैव दूर हो जाएं।
अतिवक्र! दुराराध्य! भोगमुक्तजितात्मन:।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥ ९॥
अतिवक्र, दुराराध्य भगवान् मंगल, आप प्रसन्न होने पर साम्राज्य दे सकते हो, पर नाराज होने पर तुरन्त ही साम्राज्य को नष्ट भी कर देते हो।
विरञ्चि शक्र विष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबल:॥ १०॥
हे महाराज! आप नाराज होने पर ब्रह्मा, इन्द्र तथा विष्णु के भी साम्राज्य सम्पत्ति को नष्ट कर सकते हो फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है? इस प्रकार के पराक्रम से युक्त होने के कारण आप महानबलवान् और महाराज हैं।
पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गता:।
ऋणदारिद्रयदु: खेन शत्रूणां च भयात्तत:।। ११।।
हे भगवन् आप मुझे पुत्र दो, मैं आपकी शरण में हूं। ऋण, दारिद्रय, दु:ख तथा शत्रु के भय से मुझे मुक्त करो।
एभिद्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।। १२।।
इन बारह श्लोकों वाले इस ऋणमोचन मंगल स्त्रोत से जोव्यक्ति मंगल की स्तुति करता हैं वह शीघ्र ही कर्ज से उबरने लगता है।
- ज्योतिष मंथन, 18/10/2017