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लेखक वही सफल होता है जिसे मिलता है इन ग्रहों का आशीर्वाद।

अंत:प्रेरणा, त्वरित बुद्धि, ज्ञान गम्यता और सहज सरल शाब्दिक अभिव्यक्ति ही लेखन को पाठकों के हृदय से जोड़ सकती है। पाठकों के मन से जुड़े बिना लेखक अपने लेख में आकर्षण नहीं ला सकता। लेखन एक कला है, लेखक सौम्य, सरल व विषय गाम्भीर्य से ओत-प्रोत सुंदर शब्दों को ढूँढता है, चयन करता है और उन्हें यथावसर उचित स्थान देता है, तभी कोई विलक्षण रचना बन पाती है। एक कवि ने लिखा है -
इस सरलतम शब्द योजना में एक पंक्ति में प्रत्येक शब्द एक विशिष्ट रस या भाव को प्रकट कर रहा है। शब्द स्वयं-भू नहीं है अपितु उत्पन्न किए जाते हैं, चिंतन स्वरूप निर्मित होते हैं। शब्दों के अर्थ गांभीर्य की दुनिया अद्भुत है। बुद्धि जिस ओर जाती है उस दिशा के अमूर्त भावों को शब्दों का मूर्त रूप दे देती है और मन उनका अर्थ लगाता फिरता है। मन का वह स्वरूप जो कि चिंतन करता है वह चित्त कहलाता है। पत्रिका में चंद्रमा की शुद्धता और बलवत्ता चिंतन की सामथ्र्य को बढ़ाकर मन को चित्त का रूप दे देती है।
बुध अस्त नहीं हों तो जातक विलक्षण बुद्धि संपन्न हो जाता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का नेतृत्व बुध करते हैं। बुध अंत:प्रेरणा, निर्णायक बुद्धि, वस्तु परीक्षण शक्ति, सहज समझ और विषय के बुद्धिपरक विश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चिंतन के दौरान बुध अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं और परिणाम तक ले जाते हैं। बुध बली होते हैं तो चिंतन की अंतिम अवस्था तक पहुँचने में मदद करते हैं लेकिन कमजोर हों तो विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं हो पाता। यह भी हो सकता है कि बली बुध एक विषय के अतिरिक्त दूसरे विषय पर तब तक रुचि नहीं होने देते जब तक कि पहले विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाए। ज्ञान ग्रहण करने की गति अवश्य तेज हो जाती है। सामान्य जीवन में शिक्षा, शिक्षण, प्रमाणिक गतिविधियाँ, प्रकाशन और संपादन, व्यापार और बुद्धिजीवी वर्ग पर बुध अपना वर्चस्व रखते हैं वहीं दूसरी ओर समझ, स्मरण शक्ति, तर्क, खंडन-मंडन आदि का प्रतिनिधित्व भी बुध ही करते हैं।
लेखन-कला के विकास के लिए जन्मपत्रिका में लग्न, द्वितीय भाव, चतुर्थ, पंचम व नवम भाव तथा सूर्य, बुध, बृहस्पति और चंद्रमा महत्वपूर्ण होते हैं। लग्न मस्तिष्क का, दूसरा भाव वाणी, चौथा जनसमर्थन, पंचम अन्वेषणी बुद्धि और नवम भाव आध्यात्मिक व धार्मिक रहस्यों पर सीधी पहुँच के लिए महत्वपूर्ण हैं। महान ज्योतिषी कालिदास ने उत्तर कालामृत में वर्णन किया है कि - दूसरा भाव वाणी का और पंचम बुद्धि का है। दूसरे भाव के कारक बुध और पंचम के कारक गुरु हैं। बुध का दूसरे भाव से राशि (दूसरे भाव में मिथुन या कन्या राशि हो), स्थिति या दृष्टि संबंध तथा गुरु का पंचम भाव से संबंध होने के उच्च स्तरीय परिणाम प्राप्त होने के लिए चतुर्थ भाव का सहयोग अपेक्षित है।
चतुर्थ भाव जनसहयोग व समर्थन का है अर्थात् चतुर्थ भाव के बली होने पर व्यक्ति जनता के हृदय से जुड़ जाता है। मतलब कि जातक ने जो ज्ञान अर्जित किया है उसका जनता को कितना लाभ मिलेगा या जनता या पाठकों के लिए वह कितना उपयोगी होगा? यह चतुर्थ भाव की शुभता पर निर्भर करेगा। लेखक में इन गुणों की उपस्थिति अति अनिवार्य है। सूर्य, बुध, गुरु व चंद्रमा की लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम (गहन गंंभीर चिंतन), नवम व दशम भाव (कार्य कौशल के क्षेत्र) में उपस्थिति जातक को अच्छा लेखक बना सकती है।
कहत नटत रीझत खिजत, मिलत खिलत लजियात।।
इस सरलतम शब्द योजना में एक पंक्ति में प्रत्येक शब्द एक विशिष्ट रस या भाव को प्रकट कर रहा है। शब्द स्वयं-भू नहीं है अपितु उत्पन्न किए जाते हैं, चिंतन स्वरूप निर्मित होते हैं। शब्दों के अर्थ गांभीर्य की दुनिया अद्भुत है। बुद्धि जिस ओर जाती है उस दिशा के अमूर्त भावों को शब्दों का मूर्त रूप दे देती है और मन उनका अर्थ लगाता फिरता है। मन का वह स्वरूप जो कि चिंतन करता है वह चित्त कहलाता है। पत्रिका में चंद्रमा की शुद्धता और बलवत्ता चिंतन की सामथ्र्य को बढ़ाकर मन को चित्त का रूप दे देती है।
बुध अस्त नहीं हों तो जातक विलक्षण बुद्धि संपन्न हो जाता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का नेतृत्व बुध करते हैं। बुध अंत:प्रेरणा, निर्णायक बुद्धि, वस्तु परीक्षण शक्ति, सहज समझ और विषय के बुद्धिपरक विश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चिंतन के दौरान बुध अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं और परिणाम तक ले जाते हैं। बुध बली होते हैं तो चिंतन की अंतिम अवस्था तक पहुँचने में मदद करते हैं लेकिन कमजोर हों तो विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं हो पाता। यह भी हो सकता है कि बली बुध एक विषय के अतिरिक्त दूसरे विषय पर तब तक रुचि नहीं होने देते जब तक कि पहले विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाए। ज्ञान ग्रहण करने की गति अवश्य तेज हो जाती है। सामान्य जीवन में शिक्षा, शिक्षण, प्रमाणिक गतिविधियाँ, प्रकाशन और संपादन, व्यापार और बुद्धिजीवी वर्ग पर बुध अपना वर्चस्व रखते हैं वहीं दूसरी ओर समझ, स्मरण शक्ति, तर्क, खंडन-मंडन आदि का प्रतिनिधित्व भी बुध ही करते हैं।
लेखन-कला के विकास के लिए जन्मपत्रिका में लग्न, द्वितीय भाव, चतुर्थ, पंचम व नवम भाव तथा सूर्य, बुध, बृहस्पति और चंद्रमा महत्वपूर्ण होते हैं। लग्न मस्तिष्क का, दूसरा भाव वाणी, चौथा जनसमर्थन, पंचम अन्वेषणी बुद्धि और नवम भाव आध्यात्मिक व धार्मिक रहस्यों पर सीधी पहुँच के लिए महत्वपूर्ण हैं। महान ज्योतिषी कालिदास ने उत्तर कालामृत में वर्णन किया है कि - दूसरा भाव वाणी का और पंचम बुद्धि का है। दूसरे भाव के कारक बुध और पंचम के कारक गुरु हैं। बुध का दूसरे भाव से राशि (दूसरे भाव में मिथुन या कन्या राशि हो), स्थिति या दृष्टि संबंध तथा गुरु का पंचम भाव से संबंध होने के उच्च स्तरीय परिणाम प्राप्त होने के लिए चतुर्थ भाव का सहयोग अपेक्षित है।
चतुर्थ भाव जनसहयोग व समर्थन का है अर्थात् चतुर्थ भाव के बली होने पर व्यक्ति जनता के हृदय से जुड़ जाता है। मतलब कि जातक ने जो ज्ञान अर्जित किया है उसका जनता को कितना लाभ मिलेगा या जनता या पाठकों के लिए वह कितना उपयोगी होगा? यह चतुर्थ भाव की शुभता पर निर्भर करेगा। लेखक में इन गुणों की उपस्थिति अति अनिवार्य है। सूर्य, बुध, गुरु व चंद्रमा की लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम (गहन गंंभीर चिंतन), नवम व दशम भाव (कार्य कौशल के क्षेत्र) में उपस्थिति जातक को अच्छा लेखक बना सकती है।
- ज्योतिष मंथन, 23/03/2017