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संजीवनी का कार्य करता है संगीत

शताब्दियों से यह माना जाता रहा है कि संगीत और स्वास्थ्य में गहरा संबंध है। हम यहाँ उन यथार्थों और प्रमाणों की बात करेंगे जो संगीत को एक औषध के रूप में स्थापित करते हैं और मनुष्य के तनाव एवं रोगों को कम करने का दावा करते हैं। संगीत वस्तुत: शारीरिक और मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है। कई असाध्य रोगों में तो संगीत आश्चर्यजनक परिणाम देने में सक्षम है। यदि संगीत का नियमित अभ्यास किया जाए तो निराशावाद, तनाव एवं आवेश पर नियंत्रण पाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का यह मत है कि संगीत से रक्तचाप, रक्त संचार, ऊर्जा, श्वसन और स्नायु शक्ति पर समुचित अनुकूल प्रभाव देखे जा सकते हैं। गहन शोधों से यह पता चला है कि संगीत तरंगों द्वारा उत्पन्न मानसिक एवं शारीरिक आवेगों एवं परिवर्तनों से एक जटिल मस्तिष्कीय रसायन सक्रियता का जन्म होता है।
प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी डॉ. बर्नार्ड ब्रोडी का कहना है कि संगीत मस्तिष्क के प्राकृतिक रसायनों को सक्रिय बना देता है जिससे मन में व्याप्त तनाव एवं असहजता शिथिल पड़ती चली जाती है। यही रसायनिक सक्रियता शरीर में शांत भाव उत्पन्न करती है और आधि-व्याधि से बचाती है। यही कारण है कि जब मनुष्य की मानसिक स्थिति शांत एवं प्रसन्नता का अनुभव करती है तो वह स्वयं को स्वस्थ एवं सहज महसूस करने लगता है।
संगीत की भाषा
संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत केवल आभासी शक्ति है जिसे तन और मन दोनों द्वारा ग्रहण किया जाता है, अनुभव किया जाता है और उस संगीत शक्ति के प्रभावों को मस्तिष्क के माध्यम से आवेग, संवेग, भावना एवं इच्छाओं तक पहुंचाया जाता है। इसी प्रक्रिया से सृजन होता है संगीत औषध का। जिस प्रकार अन्य औषधियाँ या ताप चिकित्साएँ अपना प्रभाव रसों द्वारा छोड़ती हैं, उसी प्रकार संगीत भी रससृजन करता है और अपने प्रभाव छोडऩे में समर्थ रहता है। जब संगीत का औषध रूप में प्रयोग किया जाता है तो रोगी की मानसिक एवं शारीरिक अपेक्षाओं का गहन अध्ययन किया जाता है और संगीतज्ञ एक विशेष प्रकार के संगीत का सृजन करता है, संगीत की यही भाषा उस रोगी के रोग निदान में औषधि का कार्य करने लगती है। जब किसी रोगी पर संगीतौषध प्रयुक्त की जाती है तो संगीतज्ञ उस रोगी के संबंध में निम्न लक्षणों का गहन अध्ययन करता है :
प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी डॉ. बर्नार्ड ब्रोडी का कहना है कि संगीत मस्तिष्क के प्राकृतिक रसायनों को सक्रिय बना देता है जिससे मन में व्याप्त तनाव एवं असहजता शिथिल पड़ती चली जाती है। यही रसायनिक सक्रियता शरीर में शांत भाव उत्पन्न करती है और आधि-व्याधि से बचाती है। यही कारण है कि जब मनुष्य की मानसिक स्थिति शांत एवं प्रसन्नता का अनुभव करती है तो वह स्वयं को स्वस्थ एवं सहज महसूस करने लगता है।
संगीत की भाषा
संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत केवल आभासी शक्ति है जिसे तन और मन दोनों द्वारा ग्रहण किया जाता है, अनुभव किया जाता है और उस संगीत शक्ति के प्रभावों को मस्तिष्क के माध्यम से आवेग, संवेग, भावना एवं इच्छाओं तक पहुंचाया जाता है। इसी प्रक्रिया से सृजन होता है संगीत औषध का। जिस प्रकार अन्य औषधियाँ या ताप चिकित्साएँ अपना प्रभाव रसों द्वारा छोड़ती हैं, उसी प्रकार संगीत भी रससृजन करता है और अपने प्रभाव छोडऩे में समर्थ रहता है। जब संगीत का औषध रूप में प्रयोग किया जाता है तो रोगी की मानसिक एवं शारीरिक अपेक्षाओं का गहन अध्ययन किया जाता है और संगीतज्ञ एक विशेष प्रकार के संगीत का सृजन करता है, संगीत की यही भाषा उस रोगी के रोग निदान में औषधि का कार्य करने लगती है। जब किसी रोगी पर संगीतौषध प्रयुक्त की जाती है तो संगीतज्ञ उस रोगी के संबंध में निम्न लक्षणों का गहन अध्ययन करता है :
- आराम एवं निश्चिंतता की अवस्था क्या होगी?
- एकाकी रहने के कारण भावनाओं का अपक्षयण।
- रोगी के अहं एवं आत्मज्ञान में अभिवृद्धि।
- रोगी में क्षय और क्रोध के भाव।
- जीवन की यथार्थता एवं सार्थकता का बोध।
- सामूहिक सक्रियता एवं मैत्री भाव उत्पन्न करना।
- स्वयं के विराट रूप का साक्षात्कार करना।
- ज्योतिष मंथन, 23/03/2017