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अमर उजाला ज्योतिष महाकुम्भ - 2018

इस महाकुम्भ में लाइफ टाईम एचीवमेंट सम्मान से सम्मानित पं. सतीश शर्मा द्वारा दिये गये वक्तव्य के प्रमुख अंश। मित्रों! अमर उजाला ज्योतिष महाकुम्भ वर्ष 2016 से शुरु हुआ और तीसरे वर्ष ही इसने उपलब्धियाँ हासिल कर ली है। उत्तराखण्ड से प्रारम्भ यह तीसरी ज्योतिष क्रांति है। पहली तो तब जब पाराशर पुत्र वेदव्यास राजस्थान से उत्तराखण्ड में आये। सरिस्का के घने जंगलों में ऋषि पाराशर की तपस्या स्थली आज भी है। सत्यवती से विवाह के परिणाम स्वरूप उत्पन्न पुत्र कृष्णद्वैपायन ने आठ वर्ष की उम्र में ही सन्यास ले लिया और उत्तराखण्ड के लिए प्रस्थान कर लिया। उन्होंने महाभारत भी लिखा। एक वेद को चार भागों में विभाजित किया। उपनिषदों को 18 भागों में विभाजित किया और 108 पुराणों का भी वर्गीकरण किया। दार्शनिक स्तर पर इन्होंने ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने उत्तराखण्ड की यात्रा की और उनके द्वारा स्थापित चार धामों में से एक ब्रदीनाथ धाम को शंकराचार्य की ज्योतिष पीठ घोषित किया। वेदव्यास भारत के प्राचीन ऋषियों में सबसे प्रमुख पाराशर जी के पुत्र थे और ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान उनको था। वे भगवान की श्रेणी में आते हैं। वेदव्यास के समय पहली ज्योतिष क्रांति थी, आदिशंकराचार्य के समय दूसरी ज्योतिष क्रांति थी तथा अमर उजाला ज्योतिष महाकुम्भ ज्योतिष की तीसरी क्रांति है। यहाँ से गया हुआ उद्घोष देश भर को प्रभावित करेगा और इस क्रांति का विस्तार शेष भारत में भी होगा। अमर उजाला ने देश भर से विद्वानों को बुलाकर एक महान कार्य किया है। यहाँ ज्योतिषियों को सम्मानित भी किया जाने वाला है। महामहिम राज्यपाल श्री के.के. पाल और सरकार के मंत्रीगण ने शामिल होकर इस कार्यक्रम को महत्त्व प्रदान कर दिया है। सरकार का ज्योतिष कार्यक्रम को समर्थन देना गहरा प्रभाव डालने वाला है।
स्वास्थ्य और सफाई को लेकर यह कार्यक्रम प्रस्तावित किया गया है। मैं वास्तुचक्र के माध्यम से कुछ बातों को समझाऊँगा। यदि भवनों और उद्योगों में उन स्थानों पर सफाई रखी जाये जहाँ देवताओं की पूजा होती है या जहाँ गंदगी रखने का निषेध है, तो सफलता का प्रतिशित बढ़ जाता है और देवता नाराज नहीं होते। ईशान कोण में जो देवता स्थित हैं यथा अदिति, दिति, शिखि, पर्जन्य, जयन्त, आप और आपवत्स इत्यादि, ये स्थान पूजा के हैं और इन्हें स्वच्छ रखना चाहिए। अन्यथा देवता नाराज होंगे। ब्रह्म स्थान में भी गंदगी रखने का निषेध है। वराहमिहिर जैसे विद्वान ने कहा है कि ब्रह्म स्थान की रक्षा यत्न पूर्वक की जानी चाहिए। नैर्ऋत्य कोण में यदि गंदगी हो और चाहे व्यर्थ का अनुपयोगी सामान ही पड़ा हो तो वहाँ से निकलने का नाम ही नहीं लेता। उस स्थान की सफाई समय-समय पर करते रहना चाहिए। वायव्य कोण रोगों का सबसे बड़ा स्रोत है। घाटा दीवालियापन, शत्रुता और राजभय वहाँ से आते हैं। मैंने सबसे पहले परीक्षण वायव्य कोण और उत्तर दिशा के बीच में स्थित नाग नामक स्थान पर किए हैं। नाग का समीकरण आप नवनाग या अष्टवासुकि से कर सकते हैं। शास्त्रों में नाग के स्थान पर द्वार से शत्रुता शब्द लिखा हुआ है। परन्तु मैंने अपनी तर्क बुद्धि से सोचा कि अगर नाग है तो जहर भी होना चाहिए। जब विद्यार्थियों की मदद से परीक्षण किये तो पाया कि विष से मृत्यु, दवाओं का रिएक्शन, नशीली दवाओं का प्रयोग या तम्बाकू जैसी वस्तुओं का प्रयोग इस द्वार के कारण होता है। अगर यह द्वार बंद कर दिया जाये तो यह दोष समाप्त हो जाएंगे। ऋषियों ने वास्तु चक्र में स्थित देवताओं के प्रतीकात्मक परिणाम बता दिये हैं, परन्तु इस विषय में बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है। वास्तु चक्र के देवताओं से आधुनिक विषयों के संकेत लेने आवश्यक हैं।
स्वास्थ्य और सफाई को लेकर यह कार्यक्रम प्रस्तावित किया गया है। मैं वास्तुचक्र के माध्यम से कुछ बातों को समझाऊँगा। यदि भवनों और उद्योगों में उन स्थानों पर सफाई रखी जाये जहाँ देवताओं की पूजा होती है या जहाँ गंदगी रखने का निषेध है, तो सफलता का प्रतिशित बढ़ जाता है और देवता नाराज नहीं होते। ईशान कोण में जो देवता स्थित हैं यथा अदिति, दिति, शिखि, पर्जन्य, जयन्त, आप और आपवत्स इत्यादि, ये स्थान पूजा के हैं और इन्हें स्वच्छ रखना चाहिए। अन्यथा देवता नाराज होंगे। ब्रह्म स्थान में भी गंदगी रखने का निषेध है। वराहमिहिर जैसे विद्वान ने कहा है कि ब्रह्म स्थान की रक्षा यत्न पूर्वक की जानी चाहिए। नैर्ऋत्य कोण में यदि गंदगी हो और चाहे व्यर्थ का अनुपयोगी सामान ही पड़ा हो तो वहाँ से निकलने का नाम ही नहीं लेता। उस स्थान की सफाई समय-समय पर करते रहना चाहिए। वायव्य कोण रोगों का सबसे बड़ा स्रोत है। घाटा दीवालियापन, शत्रुता और राजभय वहाँ से आते हैं। मैंने सबसे पहले परीक्षण वायव्य कोण और उत्तर दिशा के बीच में स्थित नाग नामक स्थान पर किए हैं। नाग का समीकरण आप नवनाग या अष्टवासुकि से कर सकते हैं। शास्त्रों में नाग के स्थान पर द्वार से शत्रुता शब्द लिखा हुआ है। परन्तु मैंने अपनी तर्क बुद्धि से सोचा कि अगर नाग है तो जहर भी होना चाहिए। जब विद्यार्थियों की मदद से परीक्षण किये तो पाया कि विष से मृत्यु, दवाओं का रिएक्शन, नशीली दवाओं का प्रयोग या तम्बाकू जैसी वस्तुओं का प्रयोग इस द्वार के कारण होता है। अगर यह द्वार बंद कर दिया जाये तो यह दोष समाप्त हो जाएंगे। ऋषियों ने वास्तु चक्र में स्थित देवताओं के प्रतीकात्मक परिणाम बता दिये हैं, परन्तु इस विषय में बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है। वास्तु चक्र के देवताओं से आधुनिक विषयों के संकेत लेने आवश्यक हैं।