होम : लेख :: इन कारणों से घर का मुख्य द्वार हो जाता है वास्तु दोष से पीड़ित।

इन कारणों से घर का मुख्य द्वार हो जाता है वास्तु दोष से पीड़ित।

07-07-2018 Page : 1 / 1

इन कारणों से घर का मुख्य द्वार हो जाता है वास्तु दोष से पीड़ित।

भूखण्ड के मध्य में द्वार कभी भी नहीं करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म स्थान में जो भाग सर्वाधिक मध्य में पड़े वहां द्वार करने से कुल का नाश होता है। एक द्वार दूसरे द्वार का भेद करे तो भी अशुभ कारक है। अगर द्वार अनिष्ट सामग्री (यथा पूर्व में प्रयुक्त सामग्री) से बनाया जाए तो धन-धान्य का नाश कर देता है। अगर नए द्वार को पुराने द्वार से संयुक्त कर दिया जाए तो वह मकान स्वामी बदलने की इच्छा रखता है। नीचे से ऊपर अगर द्वार का वेध हो जाए तो राजदंड मिलता है। यदि नई और पुरानी सामग्री से मिलाकर द्वार बनाया जाए तो वह कलिकाकरक अर्थात कलहकारक हो जाता है। इसी भांति द्वार निर्माण के समय यदि मिश्र जाति की सामग्री का प्रयोग किया जाए तो वह शुभ रहती है। एक भूमि में प्रयुक्त निर्माण सामग्री यदि दूसरी भूमि में प्रयुक्त की जाए तो दूसरे मकान में न तो पूजा हो सकती है और न ही गृह स्वामी उस मकान में बस पाता है। यदि मन्दिर का निर्माण तुड़वाकर उस सामग्री से कोई मकान बनाया जाए तो गृहस्वामी का नाश हो जाता है। ऐसा गृह स्वामी अपने मकान में बस नहीं पाता।
    सूर्य से उत्पन्न वृक्ष की छाया और ध्वज की छाया अशुभ मानी गई है। द्वार के अतिक्रमण से यह छाया भूख, बीमारी और कलह लाती है। महल के या भवन के शिखर की छाया को ध्वज छाया कहा जाता है।
    नागादंत, तराजू, खंभा, दीवार, मूषा और खिड़कियां इनको न तो द्वार के मध्य भाग में देना चाहिए और न इनको विषम रूप में प्रयोग करना चाहिए अर्थात द्वार में ऐसे स्थान पर स्थित करें जिससे कि खिड़की की दोनों भुजाएं समान आकार की हों और दायां-विस्तार भी समान आकार का हो।
    द्वार अपने-आप खुल जाए तो वह गृह स्वामी को टिकने नहीं देता। ऐसा द्वार धन क्षय, भाइयों से झगड़े और कलह कराने वाला होता है। जो द्वार अपने आप बंद हो जाता है, वह बहुत दु:ख करता है। जो द्वार आवाज के साथ बंद हो वह भी भयकारक, पादशीतल और गर्भनाश कराने वाला होता है।
- ज्योतिष मंथन पत्रिका

Subscribe to NEWS and SPECIAL GIFT ATTRACTIVE

Corporate Consultancy
Jyotish Manthan
International Vastu Academy
Jyotish Praveen