भगवान अश्विनी कुमार

भगवान सूर्य के द्वारा अश्वा के रूप में छिपी हुई संज्ञा से जुड़वीं संतानें हुई। इनमें एक का नाम दस्र दूसरे का नाम नासत्य है। माता ने नाम पर इनका संयुक्त नाम अश्विनीकुमार है (महा., अनु. 150/ 17-18)।
इनका सौन्दर्य बहुत आकर्षक है (ऋ. 6/62/5)। इनके देह से सुनहरी ज्योति छिटकती रहती है (ऋक्ï./8/8/2)। ये दोनों देवता जितने सुन्दर है, उतने ही सुन्दर उनके पालन-कर्म है। स्मरण करते ही ये उपासकों के पास पहुंच जाते हैं और उनके संकट को शीघ्र दूर कर देते हैं (ऋक्ï. 1/112/3)। `शंयु` नाम के एक ऋषि थे, इनकी गाय वन्ध्या थी, ऋषि स्मरण करने पर गाय के थनों से दूध की धारा बहने लगी (ऋ. 1/112/3)। दुर्दान्त असुरों ने `रेभ` नामक ऋषियों के हाथ-पैर बांधकर जल में डुबा दिया था। अश्विनी कुमारों ने इन्हें बाल बाल बचा दिया। असुरों ने यही दुर्गति वन्दन ऋषि की भी की थी। इन्होंने इन्हें भी शीघ्र ही बचा लिया (ऋक्ï. 1/112/5)। राजर्षि अन्तक को भी बांधकर असुरों ने अथाह जल में फेंक दिया था। यही अत्याचार राजर्षि भुज्यु के साथ भी किये जाने पर अश्विनी कुमारों ने इन्हें बचा लिया (तैत्ति. ब्रा. 3/1)।
ये देवताओं के वैद्य हैं। चिकित्सा प्राणियों पर अनुकम्पा करने के लिये ही बनायी गयी है- `अथ भूतदयां प्रति` (चरक)। अश्विनी कुमारों ने चिकित्सा के द्वारा बहुत लोगों का कल्याण किया। परावृज नामक ऋषि लंगडे हो गये थे, अश्विनी कुमारों ने उनको भला-चंगा बना दिया। ऋजाश्व ऋषि अन्धे हो गये थे, इन्होंने उन्हें आँखें दे दीं (ऋ. 1/112/8)। खेल नामक एक राजा थे, संग्राम में उनकी पत्नी विश्पला के पैर को शत्रुओं ने काट डाला था। खेल तथा पुरोहित अगस्त्य जी ने अश्विनी कुमारों की स्तुति की दोनों दयालु देवता वहाँ आ गये और उन्होंने तत्काल लोहे की टाँग लगाकर विश्पला को चलनेलायक बना दिया। च्यवनऋषि जर्जर-वृद्ध हो चुके थे। अश्विनीकुमारों ने उन्हें युवा-अवस्था दी और अपने समान सुन्दर बना दिया (ऋ. 1/116/25)। ऋग्वेदादि शास्त्रों में इनके उपकारों की लम्बी सूची प्रस्तुत की गयी है।
इनका रथ स्वर्णिम है (ऋ. 4/44/5)। इस रथ में तीन चक्के हैं और सारथी के बैठने का स्थान भी तीन खण्डों वाला है। मनुष्य का मन जैसे एक क्षण में विश्व का चक्कर लगा लेता है, वैसे ही इनका रथ भी थोड़ी ही देर में सम्पूर्ण विश्व का चक्कर लगा लेता है। (ऋक्ï. 1/118/1)।
इनका स्वरूप इस प्रकार है -
उभौ च सोपवीतौ चूडामुकुटधारिणौ।
फुल्लरक्तोत्पलाक्षौ च पीतस्रग्वस्रवर्णकौ॥
नासत्यदस्रनामानावश्विनौ भिषजौ स्मृतौ।
नासत्य और दस्र नाम वाले दोनों अश्विनी कुमार यज्ञोपवीत तथा सिर पर चूड़ा और मुकुट धारण करने वाले हैं। उनकी आँखें विकसित रक्त कमल के समान है। वे पीले वस्त्र, पीली मालाओं तथा पीतवर्ण युक्त है। वे दोनों वैद्य कहे जाते हैं।
- ज्योतिष मंथन