वैवाहिक संबंधो में कड़वाहट को दूर करने के लिए करें ये उपाय

शिवरात्रि का पर्व उत्तरी भारत में प्रचलित गौणमान गणना से फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को पड़ता है। यही तिथि मुख्यमान से (दक्षिण भारतीय गणनानुसार) माघ कृष्ण पक्ष की मानी जाती है। तिथि तो एक ही होती है, परंतु दक्षिण भारत में शुक्ल प्रतिपदा से मास प्रारंभ होता है तथा कृष्ण पक्ष बाद में आता है, अत: उत्तरी भारत में जो कृष्ण पक्ष होता है, वह दक्षिण भारत में पूर्व मास का कृष्ण पक्ष लिखा जाता है। इस प्रकार उत्तरी भारत में जो फाल्गुन कृष्ण है, वही दक्षिण भारतीय पंचाङ्गों में माघ कृष्ण पक्ष कहलाता है। यदि त्रयोदशी के दिन अद्र्धरात्रि के समय चतुर्दशी आ जाती है तथा दूसरे दिन अद्र्धरात्रि में चतुर्दशी नहीं रहती तब त्रयोदशी के दिन ही शिवरात्रि व्रत करने का धर्मशास्त्रीय विधान है। यदि दोनों दिन चतुर्दशी आधी रात में विद्यमान रहे, तब दूसरे दिन ही व्रत किया जाता है।
पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव तथा पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए हिन्दू समाज, प्रतिवर्ष इसका आयोजन कर, व्रत तथा पर्व के रूप में मनाता है तथा इस दिन गंगाजल की कांवर लाकर शिवजी का अभिषेक किया जाता है। शिव-पार्वती विवाह का वर्णन पुराणों के अतिरिक्त, श्री रामचरितमानस में भी बड़ी सजीवता से हुआ है। सगुण शिव की यह लीला, लोकोपदेश द्वारा लोकोपकार के लिए हुई थी। इस विवाह से मानव-जाति को जो संदेश मिलता है, वह यह है कि व्यक्ति को अपना जीवन निष्काम भाव से समाज सेवा के लिए समर्पित कर देना चाहिए। उसे अपने व्यक्तिगत सुख, इच्छा-अनिच्छा को तिलांजलि दे देनी चाहिए। भगवान शिव विवाह नहीं करना चाहते थे। वे तो सनातन योगी हैं, परंतु देवों के आग्रह पर वे विवाह हेतु राजी हो गए। भगवती पार्वती उनके दिव्यगुणों पर मुग्ध थीं, अत: माता-पिता, पुरजनों-परिजनों एवं देवताओं के द्वारा विचलित किए जाने का प्रयास सफल नहीं हुआ। शिव पार्वती का यह चरित्र यदि अच्छी प्रकार से समझ लिया जाए, तो आज पारिवारिक विघटन की जो विभीषिका हमारे समाज के सम्मुख उपस्थित हो रही है, वह टल जाएगी।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस घटना का वर्णन अपनी लघु काव्य रचना `पार्वती मंगल` में भी किया है। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, वर-प्राप्ति में बाधाएं हों, उनके द्वारा श्रद्धापूर्वक पार्वती मंगल के प्रतिदिन 11 पाठ किए जाने पर अवश्य ही मनोरथ सिद्धि होती है। घटस्फोट (तलाक) की स्थिति होने पर भी पत्नी द्वारा `पार्वती मंगल` का पाठ, विवाह-विच्छेद को रोकता है। इस प्रकार यह चरित्र सांसारिक जीवों के लिए कल्याणप्रद है। गोस्वामी जी के शब्दों में-
`संभु सहज समरथ भगवाना।
एहि विवाह सब विधि कल्याना॥
दुराराध्य पै अहहिं महेसू।
आसुतोष पुनि किएँ कलेसू ॥`- ज्योतिष मंथन19/02/2020