बुध - बुद्धि लाघव

एक व्यक्ति की जन्म पत्रिका में बुध की भूमिका उसे जीव जगत में सबसे महत्वपूर्ण बनाती है। उन समस्त प्राणियों में जिनके पास बोलने की क्षमता, भाषा और अन्य प्राणियों को समझाने की दक्षता नहीं होती, उनका सारा कौशल केवल इस एक गुण में छिपा रहता है कि वे अपनी रक्षा किस बुद्धि कौशल से करते हैं। शिकार के जितनी भी किस्से हैं, उनमें आप देखेंगे हिरण जैसे प्राणियों में शेर द्वारा पीछा किया जाने पर प्रत्युत्पन्न मति का अभाव दिखता है और वे सीधी दिशा में ही भागते हुए नजर आते हैं। वे अपनी गति से आत्म रखा करना चाहते हैं और बुद्धि की चपलता नजर नहीं आती। ईश्वर ने उन्हें अन्य शारीरिक दक्षता भी प्रदान नहीं की। परन्तु आप एक बन्दर का व्यवहार देखें। वह बहुत दूर नहीं भागता और अपनी बुद्धि और चपलता से आत्मा रक्षा करने में सफल हो जाता है। आप बन्दर या कौए पर उनके पीछे से पत्थर फेंक कर वार करें। वे अपना पूरा शरीर नहीं हिलाते, केवल जरा सी गर्दन हिलाई और बच गए। बन्दर तो अन्य मनोवैज्ञानिक उपाय भी अपनाता है और प्रत्याक्रमण की मुद्रा में आ जाता है। इसी को हम बन्दर घुड़की कहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्धि का कौशल और चपलता एक प्राणी के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। ईश्वर ने मनुष्य को इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त माना है।
शास्त्रों में जो बुध का वर्णन है, उसमें बुध को ज्ञान-विज्ञान, बुद्धि, चपलता, बुद्धि का स्तर और वाणी जैसे विषय दिये गये हैं। जैमिनी ऋषि ने तो बुध को और भी अधिक महत्त्व प्रदान कर दिया है और यहाँ तक कहा है कि कारकांश लग्न में यदि बुध हो तो व्यक्ति मीमांसक बनता है। भारतीय षड्दर्शनों में उत्तर मीमांशा ओर पूर्व मीमांशा अति प्रसिद्ध है। इनका सम्बन्ध वेदान्त, उपनिषद् व वैदिक कर्मकाण्ड इत्यादि से है।
योग: कर्मसु कौशलम्। गीता का यह कथन बुध पर भली-भाँति प्रयोग किया जा सकता है। गीता के चिन्तन में तो योग तथा ईश्वर के निमित किये गये कर्म और उनके लिए किये गये कौशल से ही इसका अर्थ अभिप्रेत है, परन्तु यहाँ हम इसी बात को केवल ज्योतिष योगों के सन्दर्भ में प्रयुक्त करके देखेंगे।
बुद्धियुक्तो जहातिह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्धोगाय युजयस्व योग:कर्मसु कौशलम्।।
गीता के इस श्लोक का अर्थ यह है कि बुद्धियुक्त कर्म करें। योग तभी है, जब उसका अनुचित प्रयोग नही हो।
बृहतपाराशर होरा शास्त्र के अनुसार में बुध, बुध ग्रह से अवतीर्ण हुए हैं। इन्हें शुभ ग्रह या सौम्य ग्रह माना गया है। ये वाणी के कारक है। दुर्वा का सा रंग है। इन्हें स्त्री ग्रह माना गया है तथा इनके प्रत्याधी देवता विष्णु माना गया है। यह भूमि तत्त्व हैं तथा क्षुद्र वर्ण हैं व रज प्रकृति के हैं। बुध प्रधान व्यक्तियों की देह सुन्दर होती है। संक्षिप्त में सब कुछ कहने वाले हो सकते हैं। हास्य प्रिय होते हैं और कफ, पित, वात तीनों ही प्रवृत्तियाँ होती हैं। तीनों ही प्रकृति इनमें विद्यमान है। शरीर में त्वचा पर इनका अधिकार है तथा सार्वजनिक जीवन में क्रीड़ा स्थल के स्वामी है। एक तरफ ऋतुओं पर इनका नियंत्रण है तथा निर्मित रस के स्वामी है। यह पूर्व दिशा में बलवान होते हैं तथा दिन हो या रात सर्वदा बलवान रहते हैं। शुक्ल पक्ष में अधिक बली होते हैं। फलहीन वृक्षों का सम्बन्ध बुध से जोड़ा गया है तो उधर काले रंग के कपड़ों का सम्बन्ध भी बुध से जोड़ा गया है। इनकी ऋतु शरद है तथा ज्योतिष में वाणी के कारक इन्हें माना गया है। बुध की उच्च राशि कन्या है तथा कन्या राशि में 15 अंशों पर परमोच्च माने गये हैं। मीन राशि में 15 अंश पर ये परम नीच गये हैं। कन्या राशि में ही 15 अंश तक बुध की उच्च राशि मानी गयी है। बाद के 5 अंशों में त्रिकोण राशि मानी गयी है और अंतिम दस अंश स्वराशि के माने गये हैं। हम जानते हैं कि उच्च में होने और परमोच्च में होने में बहुत बड़ा अन्तर है।
फलित ज्योतिष में बुध की उपादेयता बहुत अधिक है। बुध अशुभ सिद्ध होने पर पाप फल देते हैं, परन्तु शुभ सिद्ध होने पर फलों में अभिवृद्धि कर देते हैं। जिस ग्रह के साथ हों, उसका फल देते हैं या उसके फलों में वृद्धि करते हैं। किसी ग्रह से सहयोग करके बुध उस ग्रह के फल चरित्र को ही बदल देते हैं। बुध ग्रह में सहज वणिक वृद्धि या लाभ वृद्धि होती है और यदि किसी ग्रह को सहयोग कर जाएं तो उस ग्रह से सम्बन्धित फलों में लाभ के अंश बढ़ा देती है।
किसी राशि में बुध और सूर्य साथ स्थित हों तो वह व्यक्ति अत्यंत कार्यकुशल होता है। यदि चन्द्रमा और बुध की युति हो तो चिकित्सा या औषधी के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए यह मणिकाञ्चन योग है। ज्योतिष में चन्द्रमा को औषधी और बुध को चिकित्सक माना गया है। गुरु-बुध युति होने पर ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में व इन क्षेत्रों में अर्थोपार्जन में कौशल देखने को मिलता है। बुद्धिजीवियों के लिए यह श्रेष्ठ योग है। बुध बृहस्पति के ज्ञान-विज्ञान में वृद्धि तो करते हैं ही और बृहस्पति के आर्थिक पक्ष को उत्तम बनाते हैं। शुक्र और बुध की युति हो तो व्यक्ति कला-कौशल में निष्णात होता है और उसके माध्यम से धन दोहन में सफल होता है। शनि के साथ युति होने पर व्यक्ति मनोवैज्ञानिक होता है, मनोचिकित्सक होता है और न्यूरोलॉजी से सम्बन्ध स्थापित होता है। न्यूरोलॉजी का डॉक्टर भी बन सकता है और मरीज भी। शरीर के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं। राहु के साथ युति करके बुध व्यक्ति को बहुजीवी बना देते हैं और वह कई विषयों में दखल रखता है। यह युति भौतिकवाद के लिए उत्तम है। परन्तु केतु के साथ बुध की युति आध्यात्म की ओर ले जा सकती है। केतु बुध प्रणित वृत्तियों को काटने का काम करता है।
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