यमुना देवी

यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना प्रयागराज में जाकर त्रिवेणी संगम में गंगा से मिल जाती है। इसमें अन्य जो नदियाँ मिलती है उनमें चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्धु, बेतवा और केन हैं। दिल्ली से लेकर आगरा, इटावा, काल्पि, हमीरपुर और प्रयाग तक यह जीवनदायी स्रोत है। जहाँ महत्त्वपूर्ण किले और महल इसके किनारे बसे हैं तो भगवान कृष्ण से जुड़े सारे कथानक यमुना से जुड़े हैं। कृष्ण की सारी अटखेलियाँ जैसे कि कालिया नाग दमन, गोपियों के वस्त्र हरण, कदम लीलाएँ यमुना जी से ही जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथन -
विष्णु पुराण के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा से यम और यमी जुड़वा उत्पन्न हुए। यम तो यमराज है और यमी यमुना है। इसी यमी ने इन्द्र के आदेश से सत्यवती के नाम से जन्म लिया, जिसका पहला विवाह तो मत्स्य कन्या के रूप में महर्षि पाराशर से हुआ तथा बाद में दूसरा विवाह महाराजा शान्तनु से हुआ। इनका विवरण शिवपुराण और कूर्म पुराणों में पाया जाता है। यमुना को भी अवतार माना जाता है और मथुरा में यमुना की आरती उसी भाँति होती है, जिस भाँति हरिद्वार में गंगा की होती है। दिपावली के 2 दिन बाद भैया दूज आती है जिसका सम्बन्ध यम द्वारा यमुना को दिये गये वरदान से है। भाई - बहिन का पर्व तो है ही और पौराणिक कथन है कि जो पुरुष यम द्वितीया के दिन बहन के हाथ का भोजन करता है उसे धन, आयु, धर्म और अर्थ की प्राप्ति होती है। यमुना ने एक वरदान भी यमराज से माँगा कि जो यमुना के जल में स्नान करें, वे यमपुरी ना जायें। परन्तु यमराज ने सीमित वरदान ही दिया कि जो लोग यम द्वितीया के दिन बहन के यहाँ भोजन करके मथुरा नगर स्थित विश्राम घाट पर स्नान करेंगे, उन्हें यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। उन्होंने भोजन करने की शर्त भी लगाई।
- ज्योतिष मंथन