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लख चौरासी योनियों में से एक है : कोरोना

19-08-2020

ज्योतिष का दृष्टिकोण -
मैं कोरोना को लेकर अब तक की गई तमाम भविष्यवाणियों का खण्डन करता हूँ और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की शोध को सबसे ज्यादा उचित मानता हूँ। यह वायरस 12 अगस्त 2019 को अस्तित्व में आ चुका था, जिस दिन चन्द्रमा धनु राशि में रहते हुए शनि और केतु के बीच से भ्रमण कर रहे थे। यह केतु की उच्च राशि है तथा शनि और केतु दोनों ही वक्री हैं। जब चन्द्रमा पीडि़त होते हैं तो घटनाएँ घटती हैं। जगत लग्न मेष राशि की है और अगर इसके अनुसार विचार करें तो उस दिन  राहु-केतु अक्ष पर चन्द्रमा थे और शनि चन्द्रमा केतु से सूर्य, बुध, केतु अष्टम भाव में थे। राहु-केतु के एक तरफ कोई भी ग्रह नहीं था तथा दूसरे अर्द्ध में चन्द्रमा ने उसी दिन प्रवेश किया। केतु-शनि मुख में फंसे चन्द्रमा से असंख्य जीव पितृलोक से मुक्त होकर धरती पर अवतरण करते हैं।

कब समाप्त होगा कोरोना -
कई ग्रहों का वक्री होना प्रकृति में बड़ी हलचल कर देता है। कई वक्री ग्रहों का एक साथ बैठना सृष्टि में श्रेष्ठ म्यूटेशन या उत्परिवर्तन लाता है। अगस्त में इन दो वक्री ग्रहों के बीच में चन्द्रमा फँस गये थे और ठीक उसी के सामने राहु स्थित थे। उस पर शनि केतु से अष्टम में सूर्य थे। बाद में और ग्रह भी वक्री होने लगे। यह प्रक्रिया तेज होती रही, यहाँ तक कि दिसम्बर 2019 के महीने में धनु राशि में कई ग्रह इकट्ठे हो गये थे। ज्योतिषियों ने इसे 26 दिसम्बर के ग्रहण से जोड़ दिया था परन्तु यह पूरा सच नहीं है। हाँ, प्रक्रिया तेज हो गई थी। कोरोना ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया 21 जून 2020 के दिन। जब छह ग्रह वक्री थे और सूर्य ग्रहण था। कुछ भविष्यवाणियाँ जो व्यापक रूप में प्रसारित की गईं वे जून के महीने में कोरोना की समाप्ति बता रही थीं। मैंने इसका प्रतिरोध किया। जिस केतु के कारण कोविड-19 की उत्पत्ति हुई, उसके धनु राशि में रहते कोरोना के प्रकोप में कमी नहीं आएगी, यह निश्चित है। परन्तु उस दिन कोरोना समाप्त नहीं हो जाएगा, क्योंकि उसकी उत्पत्ति में शनि का भी योगदान है। शनि मार्गी होंगे 29 सितम्बर के दिन और तब तक कोरोना का प्रकोप जारी रहेगा। इसीलिए किसी भी वैक्सीन का वैध या अवैध संस्करण 29 सितम्बर के बाद ही कामयाब होगा। मृत्युदर में कमी आती हुई लगेगी, परन्तु चूंकि बृहस्पति 21 नवम्बर को मकर राशि में आ जाएंगे, इसलिए स्थिति फिर एक बार खराब होगी। किसी न किसी देश में कोरोना का भयानक स्वरूप मौजूद रहेगा। कोरोना जीवित रहेगा, परन्तु केवल तीन दिन का वायरल बुखार रह जाए इसके लिए हमें बृहस्पति के कुम्भ राशि में आने की प्रतीक्षा करनी होगी और वह दिन है 6 अप्रैल, 2021.

अमेरिका ने बेशक आरोप लगाये कि चीन ने कोरोना वायरस का विकास किया परन्तु हमारी मान्यता है कि चीन ने कोरोना वायरस का आविष्कार नहीं किया, यह पहले से मौजूद है। कोरोना चौरासी लाख योनियों में से एक योनि या जीव है और चीन ने सिर्फ इतना किया है जैसे कि किसी मनुष्य की किडनी बदल दी जाए, लिवर बदल दिया जाये या घुटने बदल दिये जाएं। वैज्ञानिक जगत इसके लिए म्यूटेशन शब्द का इस्तेमान प्रयोग करता है, जिसे हिन्दी में उत्परिवर्तन कहा जा सकता है। जैसे कि कोरोना के एक इकाई वायरस में एक स्पाइक या कांटा होता है जो कि किसी भी जीव पर आश्रित होने पर उसकी कोशिकाओं से संयोजन करता है या उस कोशिका के बाह्य खोल को तोड़ देता है और इस पर अतिक्रमण करता है। बाद में पता चला कि कोरोना के एक से अधिक स्पाइक या काँटे भी हैं और वो लगातार अपनी संरचना में परिवर्तन कर रहा है। रूप बदलने की इस जबरदस्त और त्वरित क्षमता ही इस कोरोना को विस्मयकारी बनाती है। चीन ने यही किया है। वैज्ञानिक हैरान है कि उसके कौनसे अवतार की वैक्सीन निकालें?

हमारी ज्योतिष मान्यता है कि भारतीय वाङ्गमय में उल्लिखित 84 लाख योनियों का पता अभी तक वैज्ञानिक नहीं लगा सके हैं। मौलीक्यूलर क्लॉक डेटिंग एनेलेसिस पद्धति से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर तो पहुँचे हैं कि वर्तमान में जितने भी कोरोना उपलब्ध हैं उनका पूर्वज 10 हजार वर्ष पहले भी मौजूद था। परन्तु अगर यह सच है तो यह विकासवाद के डार्विन के सिद्धान्त के विरुद्ध है। वैज्ञानिकों का एक समूह यह विश्वास करता है कि कोरोना जैसा जीव दसियों लाख वर्षों से पहले भी अस्तित्व में था।  आर.एन.ए. वायरस का इतिहास बहुत कुछ अनिश्चितता और अनुमान पर आधारित है।

2003 में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम (SARS) की पहचान के बाद दुनिया भर में इस किस्म के वायरस की खोज-बीन शुरु हुई, जो कि ना केवल मनुष्यों बल्कि घरेलू और जंगली जानवरों में भी की गई। तब पता चला कि यह चमगादड़ों में भी होता है। चमगादड़ों की श्वसन प्रणाली को यह इतनी जल्दी परास्त नहीं कर पाता जितना कि मनुष्यों की श्वसन प्रणाली को। परन्तु यह सिद्ध हो गया कि चमगादड़ जैसे प्राणी ही कोरोना के बड़े खजाने हैं। इस श्रेणी में चमगादड़ जैसे पक्षी अकेले नहीं हैं। दूसरी तरफ कोविड़-19 जैसा रोग भी अकेला नहीं है। खसरा, ईबोला और एवियन एंफ्लूएंजा वायरस भी इसकी सगी बहनें हैं। इससे यह तय हुआ कि वायरस नये-नये अवतार में आता रहेगा और वैज्ञानिक पीछे-पीछे भागते रहेंगे।

चीन से पहले कोरोना वायरस पर भारत में ही खोज चल रही थी। यह दावा किया गया कि भारत, चीन और अमेरिका के वैज्ञानिक नागालैण्ड के किफिरे जिले के मीमी गाँव में एक गुप्त शोध कर रहे थे। उस गाँव के 50 वर्ष से नीचे के लोगों पर यह शोध किये गये। वैज्ञानिक देखना चाहते थे कि क्या मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक क्षमता चमगादड़ों जितनी की जा सकती है? जिस तरह से चीनी लोग सर्वभक्षी हैं, उसी तरह से मीमी गाँव के लोग चमगादड़ों का शिकार भी खाने के लिए करते थे। इस गाँव में बड़ी संख्या में चमगादड़ आते थे। चीन ने इस शोध के लिए अमेरिका और सिंगापुर के वैज्ञानिकों को भी शामिल कर लिया। इस शोध के परीक्षण प्रकाशित भी हुए थे। आरोप यह है कि इस प्रोजेक्ट के निष्कर्षों को चुराकर चीन ने आगे की आधुनिक शोध के लिए वुहान शहर की लेबोरेट्री में कार्य किया। बिल गेट्स की रिसर्च मैगजीन में जब यह किस्सा छपा तो भारत सरकार की आँख खुली, क्योंकि इस शोध की आज्ञा भारत सरकार से नहीं ली गई थी। यह वर्ष 2017 का किस्सा है। भारत सरकार ने इस पर एक जाँच भी बैठायी थी। वुहान की लेबोरेट्री के शोध के लिए भी अमेरिका ने धन उपलब्ध कराया। इसका अर्थ यह है कि कोविड-19 के विकास क्रम को 2019 ही नहीं बल्कि वर्ष 2017 से 2019 के बीच की अवधि में कहीं खोजा जाना चाहिए।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने एक शोध में यह कहा कि यह वायरस वुहान में अगस्त 2019 में ही फैलने लगा था। मेडिकल स्कूल ने वुहान के अस्पताल की पार्किंग वाली जगह के उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया था। चीन ने इसका खण्डन किया, परन्तु यह सच भी सामने आया कि कोविड-19 की पुष्टि एवं पहचान से पहले ही हुआनान के सीफूड मार्केट में यह वायरस फैल चुका था। 
- पं. सतीश शर्मा,
मुख्य संपादक, ज्योतिष मंथन

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