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अन्तराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2017।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि अनेकों लोक हैं और प्रत्येक लोक में असंख्य ब्रह्माण्ड हैं। हमारी आकाश गंगा में एक अरब से अधिक तारे हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों की गवेषणा भी यही है। खगोल शास्त्र के महाविस्फोट (बिग बेंग) के संकेत सूत्र गीता से ही लिए गए हैं। गति के सिद्धान्त भी गीता से ही लिए गए है। अनेकों ब्रह्माण्डों की उपस्थिति का ज्ञान तो गीता से बहुत पहले भी था। यदुकुल के आचार्य महर्षि गर्ग ने गर्ग संहिता लिखी है। उसमें एक विवरण आता है कि शतपथ ब्राह्मण में वर्णित सूर्य लोक व द्युलोक को पार करके ब्रह्मा, विष्णु व महेश भगवान कृष्ण के धाम गौलोक पहुंचे। प्रवेश के समय ही कृष्ण की सखी शतचंद्रानना ने पूछा आप लोग किस ब्रह्माण्ड से आए हो, भगवान विष्णु ने कहा कि वामन अवतार के समय पृथ्वी का अंंगूठे से छेदन करने से जो ब्रह्म द्रव्य निकला था तथा जिसका विस्तार हो गया था उसी का पीछा करते हुए हम यहां आए हैं। तब शतचंद्रानना ने कहा कि यहां तो विरजा नदी (आकाश गंगाओं का महान समूह) में करोड़ों ब्रह्माण्ड लुढ़के पड़े हैं पंरतु अब में समझी कि आप लोग किस ब्रह्माण्ड से आये हैं। आधुनिक असंख्य ब्रह्माण्डों की खोज तो भारतीय वाङ्गमय में बहुत पहले से ही उपलब्ध है। वैज्ञानिकों ने ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब संकेत भी गीता से लिये हैं।
मुझे आधुनिक काल के कुछ वैज्ञानिकों के दावों पर आपत्ति है। उन्होंने बहुत सारे सिद्धान्त भारतीय वांगमय से उठाए और उसमें ही जोड़-तोड़ करके उन्होंने अपने दावे प्रस्तुत कर दिये। उदाहरण के लिए भारत में उज्जैन पृथ्वी का केन्द्र मानने की गणना की गयी थी। ज्योतिष की समस्त गणना पद्धतियों में महाकाल की धरती उज्जैन को आधार बनाया गया था तथा लंकोदय जैसे शब्द मिलते हैं। लंकोदय का समीकरण विषुवत रेखा पर सूर्योदय से किया जाता है।
समस्त गणनाओं के आधार निश्चित किये गए पृथ्वी के केन्द्र उज्जैन से हटाकर देशान्तर रेखाओं की गणना ग्रीनविच से प्रारम्भ कर दी गई। इस बात का कोई भी खगोलीय या ज्योतिषीय आधार नहीं है। यह मनमानी थी। मैं मेरे जीवनकाल में कामना करता हूँ कि किसी दिन वह ग्रीनविच में माना जाने वाला केन्द्र पुन: भारत के उज्जैन में आ जाए।
आधुनिक वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि समय का विस्तार होता है तथा वह धीमा या तेज हो सकता है। इसीलिए अनन्त ब्रह्माण्ड में यात्रा करने पर समय का विस्तार हो जाता है तो वहाँ का एक क्षण भी मत्र्य लोक के सैंकड़ों वर्षों के बराबर हो सकता है।
गीता में इसके संकेत भरे हुए हैं। आधुनिक बिग बैंग के सिद्धान्त को मानने वाले यह मानते हैं कि किसी एक महापिण्ड में विस्फोट हुआ और उसी से समस्त आकाश गंगाओं, नक्षत्रों और ग्रहों की उत्पत्ति हुई हैं। वहीं से समस्त तेज प्राप्त करते हैं। गीता के अध्याय 17 में इस बात का विवरण है, जिसमें कृष्ण करते हैं-
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेर्जोऽशसम्भवम्।।
ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने यहीं से Big Bang या Cosmic Inflation या ब्रह्माण्ड स्फीति, जिसे आम भाषा में ब्रह्माण्ड का महाविस्फोट कहते हैं, का विचार चुरा लिया था। आधुनिक वैज्ञानिकों की गवेषणा है कि 13.8 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया था। वह यह भी मानते हैं कि यह ब्रह्माण्ड स्फीति 1 सैकण्ड के 1 खरबवें हिस्से में ही सम्पन्न हो गई थी। अभी हाल में आइंस्टीन के जिस सापेक्षतावाद के सिद्धान्त में कही गई गुरुत्वीय तरंगों की बात की गई थी वह ब्रह्माण्ड स्फीति के कारण उत्पन्न थरथराहट है। इस सिद्धान्त के 100 वर्ष बाद 1 ब्लैक होल द्वारा दूसरे ब्लैक होल को निगल जाने की प्रक्रिया से उत्पन्न तरंगों की थरथराहट है, जिसके कारण यह सिद्ध हुआ कि यह तरंगे प्रकाश कणों की भी वाहक हैं और समस्त जगत के किसी महापुञ्ज के आकर्षण में बने रहने के कारण है।
आधुनिक वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड के महाविस्फोट, महास्फीति और महासंकुचन की प्रेरणा ईश्वर के विश्वरूप से ही मिली, ऐसी मेरी धारणा है। याद रहे कृष्ण का ऐश्वर्य गीता में ही प्रकट नहीं हुआ, बल्कि कल्प के प्रारंभ में जब उन्होंने प्रथम उपदेश विवश्वान सूर्य को दिया था, वही उपदेश सूर्य ने मनु को दिया था और मनु ने इक्ष्वाकु को दिया था।
मुझे आधुनिक काल के कुछ वैज्ञानिकों के दावों पर आपत्ति है। उन्होंने बहुत सारे सिद्धान्त भारतीय वांगमय से उठाए और उसमें ही जोड़-तोड़ करके उन्होंने अपने दावे प्रस्तुत कर दिये। उदाहरण के लिए भारत में उज्जैन पृथ्वी का केन्द्र मानने की गणना की गयी थी। ज्योतिष की समस्त गणना पद्धतियों में महाकाल की धरती उज्जैन को आधार बनाया गया था तथा लंकोदय जैसे शब्द मिलते हैं। लंकोदय का समीकरण विषुवत रेखा पर सूर्योदय से किया जाता है।
समस्त गणनाओं के आधार निश्चित किये गए पृथ्वी के केन्द्र उज्जैन से हटाकर देशान्तर रेखाओं की गणना ग्रीनविच से प्रारम्भ कर दी गई। इस बात का कोई भी खगोलीय या ज्योतिषीय आधार नहीं है। यह मनमानी थी। मैं मेरे जीवनकाल में कामना करता हूँ कि किसी दिन वह ग्रीनविच में माना जाने वाला केन्द्र पुन: भारत के उज्जैन में आ जाए।
आधुनिक वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि समय का विस्तार होता है तथा वह धीमा या तेज हो सकता है। इसीलिए अनन्त ब्रह्माण्ड में यात्रा करने पर समय का विस्तार हो जाता है तो वहाँ का एक क्षण भी मत्र्य लोक के सैंकड़ों वर्षों के बराबर हो सकता है।
गीता में इसके संकेत भरे हुए हैं। आधुनिक बिग बैंग के सिद्धान्त को मानने वाले यह मानते हैं कि किसी एक महापिण्ड में विस्फोट हुआ और उसी से समस्त आकाश गंगाओं, नक्षत्रों और ग्रहों की उत्पत्ति हुई हैं। वहीं से समस्त तेज प्राप्त करते हैं। गीता के अध्याय 17 में इस बात का विवरण है, जिसमें कृष्ण करते हैं-
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेर्जोऽशसम्भवम्।।
(श्रीमद्भगवद्गीता/अध्याय १०)
तुम जान लो कि सारा ऐश्वर्य, सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियाँ मेरे तेज के क्षण स्फुरण से उद्भूत हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने यहीं से Big Bang या Cosmic Inflation या ब्रह्माण्ड स्फीति, जिसे आम भाषा में ब्रह्माण्ड का महाविस्फोट कहते हैं, का विचार चुरा लिया था। आधुनिक वैज्ञानिकों की गवेषणा है कि 13.8 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया था। वह यह भी मानते हैं कि यह ब्रह्माण्ड स्फीति 1 सैकण्ड के 1 खरबवें हिस्से में ही सम्पन्न हो गई थी। अभी हाल में आइंस्टीन के जिस सापेक्षतावाद के सिद्धान्त में कही गई गुरुत्वीय तरंगों की बात की गई थी वह ब्रह्माण्ड स्फीति के कारण उत्पन्न थरथराहट है। इस सिद्धान्त के 100 वर्ष बाद 1 ब्लैक होल द्वारा दूसरे ब्लैक होल को निगल जाने की प्रक्रिया से उत्पन्न तरंगों की थरथराहट है, जिसके कारण यह सिद्ध हुआ कि यह तरंगे प्रकाश कणों की भी वाहक हैं और समस्त जगत के किसी महापुञ्ज के आकर्षण में बने रहने के कारण है।
आधुनिक वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड के महाविस्फोट, महास्फीति और महासंकुचन की प्रेरणा ईश्वर के विश्वरूप से ही मिली, ऐसी मेरी धारणा है। याद रहे कृष्ण का ऐश्वर्य गीता में ही प्रकट नहीं हुआ, बल्कि कल्प के प्रारंभ में जब उन्होंने प्रथम उपदेश विवश्वान सूर्य को दिया था, वही उपदेश सूर्य ने मनु को दिया था और मनु ने इक्ष्वाकु को दिया था।