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लक्ष्मी को कमल क्यों प्रिय ?

17-10-2019 Page : 1 / 1

लक्ष्मी को कमल क्यों प्रिय ?

पद्म के साथ लक्ष्मी का संबंध बहुत व्यापक है। देवी की संज्ञाएं पद्मा, पद्म हस्ता, पद्मवासा, कमलालया, आदि प्रसिद्ध हैं। प्राचीन लक्षण ग्रंथों में लक्ष्मी के साथ कमल का अनेक प्रकार से संबंध दिखाया गया है। उदाहरणार्थ - पूर्वकारणागम नामक ग्रंथ (पटल 12) में लक्ष्मी को पद्मपत्रासमासीना, पद्मा, पद्महस्तिनी (अर्थात् पद्म पत्र के आसन पर बैठी हुई कमल के से रंग वाली तथा हाथ में कमलधारिणी) कहा गया है। विष्णुधर्मोंत्तरपुराण में लक्ष्मी का वर्णन करते हुए उन्हें पद्मस्था पद्महस्ता च गजोत्क्षिप्तघटप्लुता (कमल पर स्थित, कमलधारिणी तथा हाथियों द्वारा उठाए हुए घड़ों से अभिषिक्त) कहा गया है। कमल का फूल सुकुमारता, उज्वलता और शांति का अभिव्यञ्जक होता है। साहित्य और कला में हाथ में लीला कमल धारण किए हुए सुन्दरियों के आलेखन मिलते हैं। कालिदास ने मेघदूत में अलकापुरी की महिलाओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे हाथों में लीला कमल लिए हुए रहती हैं और उनकी अलकों कुन्द के पुष्प शोभित होते हैं -

हस्ते लीलाकमलमलके बालकुन्दानुविद्धम्। (उत्तरमेघ. 2)

बाणभट्ट ने कादम्बरी में उत्फुल्ल कमल को हाथ में धारण किए हुए लक्ष्मी का उल्लेख किया है -

उत्फुल्लारविन्दहस्तयालिङ्गतो लक्ष्म्या।

अन्य अनेक कवियों ने लक्ष्मी के मनोरम वर्णन किए हैं।
अगम तथा अन्य लक्षण ग्रंथों में लक्ष्मी की प्रतिमा का विधान मिलता है। अंशमद्भेदागम के 49 वें पटल के अनुसार लक्ष्मी की मूर्ति को कमलपुष्प पर बैठे हुई, दो भुजाधारिणी तथा सोने के से रंग वाली दिखाना चाहिए। उसके कानों में सोने और रत्न जटिज मकराकृति वाले उज्ज्वल कुण्डल सुशोभित होने चाहिए -

लक्ष्मी: पद्मसमासीना द्विभुजा काञ्चनप्रभा।
हेमरत्नोज्ज्वलैन्र्हेमकुण्डलै: कर्णमण्डिता।।


लक्ष्मी को चारुशीला युवती के रूप में चित्रित करने का विधान मिलता है। उसके अनुसार देवी के नेत्र प्रफुल्ल कमल के समान और भौंहे कुंचित होनी चाहिए। एक हाथ में श्रीफल या बिजौरा नींबू तथा दूसरे में पद्म धारण करें। सुन्दर वस्त्र तथा विविध आभूूषणों से लक्ष्मी प्रतिमा को सज्जित दिखाना चाहिए। कुछ प्राचीन लक्षण ग्रंथों में लक्ष्मी के चार हाथ दिखाने का विधान है और लिखा है कि उनके अतिरिक्त दोनों हाथों में अमृतवट और शंख होने चाहिए।

माता लक्ष्मी की दया -

पितेव त्वत्पे्रयाञ्जननि परिपूर्णागसि जने, हितस्रोतोवृत्त्या भवति च कदाचित् कलुषधी:।
किमेतन्निर्दोष: क इह जगतीति त्वमुचितै, रुपायैर्विस्मार्य: स्वजनयसि माता तदसि न:।।


हे माता महालक्ष्मी! आपके पति (महाविष्णु) जब कभी पूर्णापराधी जीव के ऊपर पिता के समान हितकी दृष्टि से क्रोधित हो जाते हैं, उस समय आप ही - यह क्या! इस जगत में निर्दोष है ही कौन, इत्यादि रूप से उपदेश कर उनके क्रोध को शांत करवाके दया को जाग्रत कर उसे अपनाती हैं, तभी तो आप हमारी (हम सबकी) माता हैं।- ज्योतिष मंथन

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